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कांई सांचाणी ! / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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<Poempoem
कींकर झूठो मानूं
बां दिनां रै सांच नै
हेत पण निवड़ जावै !!
इण भांत ??
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