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हेत / चैनसिंह शेखावत

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<poem>बिरखा में नीं गळ्या होवैला
तावड़ै नीं पिघळ्या होवैला
थंारै मगरां ही मांडी
होठां री सैनाणी म्हारी।

हां, आज ई उळझै
म्हारै कमीज रै बटण मांय
थांरो एक लांबो बाळ
आज ई ब्याळ-बगत
यादां रा जुगनू
नै’र रै पार तांई
पळकता दीसै।

एक हेत
अर एक विस्वास
हर्यो राखै झिरक
जिंदगाणी नैं
आज ई।</poem>
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