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04:29, 18 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चैनसिंह शेखावत
|संग्रह=
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
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<poem>ऐ किला, म्हैल, मिंदर
सगळा थां रा ई तो निजराणा हा
जोधा पण थे ई हा
जितरा ई स्वयंवर होया
कै होया हरण
थे ई जीत्या हा सगळा जुध
जिया तो थे
मर्या तो थे
अमर इतिहास पुरुस।
एक बस जौहर री सैनाण बाकी है
कांकरां मांय कांकरा बण्या हाड
हरम रै हरामीपणै मांय
सांस लेवती हिचक्यां।
थांरा सिरपेच सदा ऊंचा
खंभा माथै झूलती
मूंछ मरोड़ती मुलक
हरमेस कायम।
आज तांई जीवै
जौहरां बळतै चाम री बास
सतीपणै री कथावां मांय
किणी रै मिनख होवण माथै सवाल
आजै ई सिळगै।</poem>