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हेत / चैनसिंह शेखावत
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<poem>बिरखा में नीं गळ्या होवैला
तावड़ै नीं पिघळ्या होवैला
थंारै मगरां ही मांडी
हर्यो राखै झिरक
जिंदगाणी नैं
आज ई।</poem>
आशिष पुरोहित
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