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00:37, 22 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem> मैं कैसे ऊधो जोगिन भेस बनइहों।
कर कंगन को काह करूँ मैं वेनी शीश दुरैहों।
कटि को नूपुर काह करइहो कइसे खाक लगइहों।
कुंडल कान नैन के काजर फूलन सेज गँवइहों।
महल छोड़ बन कइसे रहिहों मृग के छाल डँसइहों।
गजमुक्ता के हार त्याग के तुलसी हार लगइहों।
झोरी काँख कर लिया कमंडल घर घर अलख जगइहों।
ए ऊधो माधो से कहिहों वेगी श्याम घर अइहों।
द्विज महेन्द्र बिनु देखे मोहन नैन चैन ना पइहों।
</poem>
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