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02:25, 24 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
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|संग्रह=
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<poem> इस्कबाजी में मेरी जान रहे या न रहे।
यार से मिलता हूँ अब ईमान रहे या न रहे।
दे दिया दिल दिल्लगी में क्यों नहीं समझे ये दिल,
देखिये दिल देने का एहसान रहे या न रहे।
बाद मरने के मेरे याद में रखना प्यारे,
लीजिए हिरदया यहीं निशान रहे या न रहे।
अब तो महेन्द्र मिल भी जा आशा भी मिट ही गया,
चार दिन का जान है अरमान रहे या न रहे।
</poem>