1,032 bytes added,
15:19, 23 नवम्बर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सिया चौधरी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}<poem>ओळूं आई...
मां रै सागै थांरी
करती ही हथाई
फेर आ जावती लाज
जद मां बतावती
सासरियै री कोई बात....।
म्हनैं पाछी
मधरै वायरै-सी
ओळूं आई...
बैनां चिड़ावती,
हंसती अर कैवती-
ओ लाडेसर जीजी!
थांरो ब्यांव करांला
कैर रै उपराळै बैठा....।
फेर कठै सूं
थाक्योड़ी-सी म्हनैं
ओळूं आई....
बिना खोट, क्यूं थे
भेज दियो संदेसो
कै नीं आवैली
म्हारै मांढै ऊपरां
थांरी बरात....।</poem>