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निमत / कन्हैया लाल सेठिया
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08:06, 28 नवम्बर 2013
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<poem>
रात
बगत
डामर री सड़क
सिकन्दर
जकी ठेठ
बगत
जावै
पोरस
सूरज
न कोई जीत्यो
न कोई हार्यो
बै तो हा
दो संसकिरत्यां
रै
गांव
मिलण रा
निमत
जुद्ध‘र रमत
सारीसी दोन्यां री गत
!
</poem>
आशिष पुरोहित
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