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22:41, 2 दिसम्बर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजेश कुमार व्यास
|संग्रह=
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<poem>नाप लेवै सबद
अरबां-खरबां
कोसां रो आंतरो
बूर देवै
मन मांय
खुद्योड़ी
अलेखूं खायां।
घणकरी बार
सुळझाय देवै
अंतस मांय
उळझ्योड़ा
हजारूं-हजार
गुच्छा।
सबद पुळ है
अबखै बगत रा
जीवण-जातरा रा।</poem>