698 bytes added,
22:42, 2 दिसम्बर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेश कुमार व्यास
|संग्रह=
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita}}
<poem>रेत नीं
अंवेर्यो हो
धोरां रो हेत।
धोबा भर-भर
भेळी करता बेकळू
भायलां सागै
रळ-मिळ’र
रोज बणावता
म्हैल-माळिया।
विगत मांय जावूं
सोधूं-
कीं लाधै कोनी
भींच्योड़ी होवतै थकै
छानै’क
मुट्ठी सूं
निसर जावै रेत।</poem>