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निसर जावै रेत / राजेश कुमार व्यास
Kavita Kosh से
रेत नीं
अंवेर्यो हो
धोरां रो हेत।
धोबा भर-भर
भेळी करता बेकळू
भायलां सागै
रळ-मिळ’र
रोज बणावता
म्हैल-माळिया।
विगत मांय जावूं
सोधूं-
कीं लाधै कोनी
भींच्योड़ी होवतै थकै
छानै’क
मुट्ठी सूं
निसर जावै रेत।