1,649 bytes added,
13:15, 27 दिसम्बर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
बिखरी हुर्इ हयात1 से सिमटे लिबास थे
हम डूबती सदाओं2 के कुछ आस-पास थे
आंखों में अपनी मंज़रे-सद-दस्ते-यास3 थे
हम मौसमे-बहार से यूंरू शनास4 थे
आया न कोर्इ आशना5 चेहरा ही सामने
हम शहरे-ख़्सवाबे-ज़ार6 में बेहद उदास थे
रंगीन तितलियों ने लुभाया बहुत मगर
हम पानियों के शहर में टूटे गिलास थे
फैली हुर्इ थी ख़ौफ की इक धुंध चारसू7
जंगल के जानवर भी बहुत बदहवास थे
लम्हों की धूप छांव ने पहचान छीन ली
हम आइनों के गांव में इक देवदास थे।
तुम वहम की गुफाओं में खो जाओगे 'कंवल’
हम को भी सब कहेंगे कि निष्फल प्रयास थे।
1. जीवन 2. आवाज 3. निराशाकेजंगलकेदृश्य 4. परिचित
5. परिचित-मित्र 6. निद्रित नगर 7. चतुर्दिष
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader