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धूप लगी शहतीरें / गुलाब सिंह
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10:18, 4 जनवरी 2014
घिरा अँधेरा आँकें
उठे धुएँ से स्याह पड़
गई
गईं
धूप लगी शहतीरें।
</poem>
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