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कुछ शे’र / जलील मानिकपुरी

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23.
यह सोच ही रहे थे कि बहार ख़त्म हुई,
कहाँ चमन में निशेमन<ref>आशियाना, घोंसला, नीड़</ref> बने या न बने ।
24.
रहे असीर<ref>बन्दी, क़ैदी</ref> तो शिकवा हुए असीरी<ref>क़ैद, कारावास</ref> के,
रिहा हुआ तो मुझे गम है रिहाई का ।
 
25.
वादा करके और भी आफ़त में डाला आपने,
ज़िन्दगी मुश्किल थी, अब मरना भी मुश्किल हो गया ।
 
26.
सब बाँध चुके कब के, सरे-शाख निशेमन,
एक हम हैं कि गुलशन की हवा देख रहे हैं ।
 
27.
हसरतों का सिलसिला कब ख़त्म होता है 'जलील',
खिल गए जब गुल तो पैदा और कलियाँ हो गईं ।
</poem>
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