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जश्ने ग़ालिब / साहिर लुधियानवी
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21:08, 24 नवम्बर 2007
::गांधी हो कि ग़ालिब हो, इन्साफ़ की नज़रों में,
::हम दोनों के क़ातिल हैं, दोनों के पुजारी हैं
।
तुर्बत= क़ब्र; मसकन= निवासस्थान; वादा-ए-फ़रदा= कल के लिए किया गया वायदा
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Lina niaj