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चुप रहो / फ़्योदर त्यूत्चेव
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09:42, 17 अप्रैल 2014
<poem>
चुप रहो, छिपे रहो
छिपाए अपने उद्वेग
र
और
स्वप्न —
अपने मन की गहराइयों में
उठने दो उन्हें, शान्त होने दो उन्हें,
अनिल जनविजय
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