{{KKCatGhazal}}
<poem>
आराइशे-खुर्शीदो-क़मर <ref>चाँद तारों की सजावट</ref>किसके लिए है
जब कोई नहीं है तो ये घर किसके लिए है
होगा भी बड़ा तेरा जिगर किसके लिए है
हैं अपने मरासिम <ref>ताल्लुक़ात</ref>भी मगर ऐसे कहां हैं
इस सम्त इशारा है मगर किसके लिए है
आंखों में तेरी गर्दे-सफ़र किसके लिए है
अब रात बहुत हो भी चुकी बज़्म <ref>प्रोग्राम</ref>शुरू हो
मैं हूं न यहां दर पे नज़र किसके लिऐ है
लहजे में तेरे ज़ख़्मे-हुनर किसके लिए है
शक़ था तिरे तक़वे <ref>बे दाग छबि</ref>पे ‘अना’ पहले से मुझको वो ज़ोहराजबीं <ref>सुंदरी</ref>कल से इधर किसके लिए है</poem>{{KKMeaning}}