आराइशे-खुर्शीदो-क़मर किसके लिए है ।
जब कोई नहीं है तो ये घर किसके लिए है ।।
मुझ तक तो कभी चाय की नौबत नहीं आई ।
होगा भी बड़ा तेरा जिगर किसके लिए है ।।
हैं अपने मरासिम मगर ऐसे कहां हैं ।
इस सम्त इशारा है मगर किसके लिए है ।।
है कौन जिसे ढूंढ़ती फिरतीं हैं निगाहें ।
आंखों में तेरी गर्दे-सफ़र किसके लिए है ।।
अब रात बहुत हो भी चुकी बज़्म हो ।
मैं हूं न यहां दर पे नज़र किसके लिऐ है ।।
अशआर की शोख़ी तो चलो सबके लिए हाँ।
लहजे में तेरे ज़ख़्मे-हुनर किसके लिए है ।।
शक़ था तिरे तक़वे पे ‘अना’ पहले से मुझको ।
वो ज़ोहराजबीं कल से इधर किसके लिए है ।।
शब्दार्थ
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