|रचनाकार=भूषण
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{{KKCatPad}}<poem>इंद्र निज हेरत फिरत गज इंद्र अरु,इंद्र को अनुज हेरै दुगध नदीश कौं .
भूषण भनत सुर सरिता कौं हंस हेरै,
विधि हेरै हंस को चकोर रजनीश कौं .
साहि तनै सिवराज करनी करी है तैं,
जु होत है अच्मभो देव कोटियो तैंतीस को .
पावत न हेरे जस तेरे में हिराने निज,
गिरि कों गिरीस हेरैं गिरजा गिरीस को .</poem>