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01:13, 13 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मोहन पुरी
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
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<poem>म्हैं देखूं हूं
जंगळ मांय
रूंख रोवता थका
आपणा-आपणा भोजन री
खोज में अपघात
कर रैया है,
घास-दोबड़ी रा आंगणां नैं
अंगरेजी बूंल्या चर रैया है...
अर ऊब रैया है सूरज
पवन सूं बातां करतां-करतां
...अर पसार दी है सड़क
आपणी टांग्यां
‘चतुर्भुज कॉरिडोर’ में
जिण पे आवण वाळा टैम में
मिनखां री लासां...
कारां चलावैगी।</poem>