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मण्डी / राजेन्द्र जोशी

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|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|संग्रह=सब के साथ मिल जाएगा / राजेन्द्र जोशी
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{{KKCatKavita‎}}<poem>माँ की गोद में ही
रोज बाजार लगता है
हत्यारे इसमें दुकान लगाते है
रोज माल बेचते हैं
किसने कितनी लाशे बिछायी
उसी से हिसाब होता है ग्राहकी का
ये मण्डी किसने बनाई
किसने किया लोकार्पण
कौन ले रहा है टैक्स
इसकी सूचना चाहिए
माँ के बेटो को
मण्डियां और बढ़ रही है
कश्मीर से आगे
बढ़ रहा
है इसका कारोबार
कभी हैदराबाद
कभी जयपुर
इसकी तालाबंदी कर दो
मण्डी में माल बदल दो
फूलो की मण्डी बना दो
सूनी होने से बचा लो
माँ की गोद को
भारत को मण्डी होने से बचा लो।
माँ की गोद में ही
रोज बाजार लगता है।</poem>
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