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<poem>
कोई कहियौ रे प्रभु आवनकी
आवनकी मनभावन की।

आप न आवै लिख नहिं भेजै
बाण पड़ी ललचावनकी।

ए दो नैण कह्यो नहिं मानै
नदियां बहै जैसे सावन की।

कहा करूं कछु नहिं बस मेरो
पांख नहीं उड़ जावनकी।

मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे
चेरी भै हूं तेरे दांवनकी।
</poem>
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