|रचनाकार=पूर्णिमा वर्मन
}}
[[Category:गीत]]{{KKCatGeet}}<poem>अमन चैन के भरम पल रहे -<br>रामभरोसे!<br>कैसे-कैसे शहर जल रहे -<br>राम भरोसे!<br>जैसा चाहा बोया-काटा<br>दुनिया को मर्ज़ी से बाँटा<br>उसकी थाली अपना काँटा<br>इसको डाँटा उसको चाँटा<br>रामनाम की ओढ़ चदरिया <br>कैसे आदमज़ात छल रहे-<br>राम भरोसे!<br>दया धर्म नीलाम हो रहे<br>नफ़रत के ऐलान बो रहे<br>आँसू-आँसू गाल रो रहे<br>बारूदों के ढेर ढो रहे<br>जप कर माला विश्वशांति की<br>फिर भी जग के काम चल रहे-<br>राम भरोसे!<br>भाड़ में जाए रोटी दाना<br>अपनी डफली अपना गाना<br>लाख मुखौटा चढे भीड़ में<br>चेहरा लेकिन है पहचाना<br>जानबूझ कर क्यों प्रपंच में <br>प्रजातंत्र के हाथ जल रहे-<br>राम भरोसे!<br><br/poem>