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18:02, 29 जून 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
गरम दूध मुझको पिलवाते दादाजी|
काजू या बादाम खिलाते दादाजी|
थाली में भर भर कर चंदा की किरणे,
मुझे चांदनी में नहलाते दादाजी|
कभी कभी जब मैं जिद पर अड़ जाता हूं,
तोड़ गगन से लाते तारे दादाजी|
मुझको जब भी लगती है ज्यादा गरमी,
बादल से सूरज ढकवाते दादाजी|
नहीं बूंद भर पानी जब होता घर में,
आसमान में छेद कराते दादाजी|
फिर वे मेघों को आदेश दिया करते,
जब चाहे जब जल गिरवाते दादाजी|
</poem>