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18:02, 29 जून 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
जितनी ज्यादा बूढ़ी दादी,
दादा उससे ज्यादा|
दादी कहती ‘मैं’ शहजादी,
औ दादा शह्जादा|
दादी का यह गणित नातियों,
पोतों को ना भाता|
बूढ़े लोगों को क्यों माने,
शहजादी ,शहजादा|
दादी बोली,अरे बुढ़ापा,
नहीं उमर से आता|
जिनका तन मन निर्मल होता,
वही युवा कहलाता|
</poem>