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व्यर्थ हँसी न उड़वायें / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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05:05, 30 जून 2014
रसगुल्ले कुछ बनवायें|
फिर बैठक में हुआ फैसला,
कच्चा माल कहां पाएं |
खोवा लल्लू की दुकान से,
थोड़ी सी मेंदा औ काजू,
खुशबू वाले इत्र जरा
,
|
किसी पड़ौसी के घर जाकर,
मम्मीजी
खुद
ही लायें|
गैस है घर में पानी घर में,
एक किलो निर्माण कराने,
में कितना खर्चा होगा
,
|
सभी निवेदन करने वाले,
ठीक ठीक से बतलायें|
जो यथार्थ में सच्ची हो|
शेख चिल्लियों जैसे बनकर,
व्यर्थ हँसी ना
उड़वायें|
</poem>
Mani Gupta
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