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कौये कोयल उड़ते|
इनके उड़ने से ही रिश्ते,
भू सॆ नभ के जुड़ते||
धरती से संदेशा लेकर , पंख पखेरु जाते| गंगा कावेरी की चिठ्ठी, अंबर को दे आते|
पूरब से लेकर पश्चिम तक,
मेघों को बतलाते|
संदेशा सुनकर बाद‌लजी, हौले से मुस्कराते,| पानी बनकर झर झर झर, धरती की प्यास बुझाते|</poem>
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