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खिल उठा फूल सा बदन उसका / ‘अना’ क़ासमी
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08:13, 2 जुलाई 2014
मेरा लहजा है सारा फ़न उसका
जुफ़्त
<ref>सम संख्या</ref>
वो था में ताक़
<ref>विसम संख्या</ref>
बन के रहा
एक सन मेरा एक सन उसका
एक
चार
चादर
है कुल मताए फ़कीर
वो ही बिस्तर वही क़फ़न उसका
<poem>
{{KKMeaning}}
वीरेन्द्र खरे अकेला
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