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17:05, 9 जुलाई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>आरति श्रीबृषभानुसुता की।
मंजु मूर्ति मोहन-ममता की॥
त्रिबिध तापजुत संसृति-नासिनि,
बिमल बिबेक-बिराग-बिकासिनि,
पावन प्रभु-पद-प्रीति-प्रकासिनि
सुन्दर-तम छबि सुन्दरता की॥-१॥
मुनि-मन-मोहन मोहन-मोहिनि,
मधुर मनोहर मूरति-सोहनि,
अबिरल प्रेम-अमिय-रस-दोहनि,
प्रिय अति सदा सखी ललिता की॥-२॥
संतत सेव्य संत-मुनि-जन की,
आकर अमित दिय गुन-गन की,
आकर्षिणी कृष्ण-तन-मन की,
अति अमूल्य सपति समता की॥-३॥
कृष्णात्मिका, कृष्ण-सहचारिनि,
चिन्मय बृन्दा-बिपिन-बिहारिनि,
जगज्जननि जग-दुःख-निवारिनि,
आदि अनादि सक्ति बिभुता की॥-४॥
</poem>