Changes

दोहे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

44 bytes added, 05:04, 12 अगस्त 2014
{{KKCatDoha}}
<poem>
आजीवन थे जो पिता, कल कल बहता नीरनीर।कैसे मानूँ आज वो, हैं केवल तस्वीरतस्वीर॥
रहे सुवासित घर सदा, आँगन बरसे नूरनूर।माँ का पावन रूप है, जलता हुआ कपूरकपूर॥
हर लो सारे पुण्य पर, यह वर दो भगवानभगवान।बिटिया के मुख पे रहे, जीवन भर मुस्कानमुस्कान॥
नथ, बिंदी, बिछुवा नहीं, बनूँ न कंगन हाथहाथ।बस चंदन बन अंत में, जलूँ उसी के साथतुम्हारे साथ॥
दीप कुटी का सोचता, लौ सब एक समानसमान।राजमहल के दीप को, क्यूँ इतना अभिमानअभिमान॥
जाति पाँति के फेर में, वंश न करिये तंगतंग।नया रंग पैदा करें, जुदा जुदा दो रंगरंग॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits