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रात का गीत / रमेश रंजक
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17:29, 20 अगस्त 2014
घिरने लगे नींद के बादल
दुखने लगा आँख का काजल
शाम सो गई है ।
अब तो रात हो गई है ।।
दीख रही अब ऐसी काली
खिड़की नहीं रही जैसे --
दवात हो गई है ।
अब तो रात हो गई है ।।
फिर से होने लगे पनीले
घर-बाहर जैसे हल्की --
बरसात हो गई है ।
अब तो रात हो गई है ।।
तम से लड़ते हिम्मत वाले
वीरों की उजली सेना --
तैनात हो गई है ।
अब तो रात हो गई है ।।
</poem>
अनिल जनविजय
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