1,202 bytes added,
04:34, 21 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
(राग कलिंगड़ा-ताल तीन ताल)
अरे मन, कर प्रभु पर बिस्वास।
क्यों इत-उत तू भटक्यौ डोलै, झूठे सुख की आस॥
सुन्दर देह, सुहावनि नारी, सब बिधि भोग-बिलास।
कहा भयौ धन-पुत्र भये तें, मिटी न जम की त्रास॥
नौकर-चाकर, बंधु घनेरे, ऊँचौ पदबी खास।
डरत लोग देखत भौं टेढ़ी करत मृत्यु उपहास॥
मिथ्या मद-उन्मा गँवाये व्यर्थ अमोलक स्वास।
पछितायें पुनि कछु न बसाये, बनै काल को ग्रास॥
</poem>