भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अरे मन, कर प्रभु पर बिस्वास / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
(राग कलिंगड़ा-ताल तीन ताल)
अरे मन, कर प्रभु पर बिस्वास।
क्यों इत-उत तू भटक्यौ डोलै, झूठे सुख की आस॥
सुन्दर देह, सुहावनि नारी, सब बिधि भोग-बिलास।
कहा भयौ धन-पुत्र भये तें, मिटी न जम की त्रास॥
नौकर-चाकर, बंधु घनेरे, ऊँचौ पदबी खास।
डरत लोग देखत भौं टेढ़ी करत मृत्यु उपहास॥
मिथ्या मद-उन्मा गँवाये व्यर्थ अमोलक स्वास।
पछितायें पुनि कछु न बसाये, बनै काल को ग्रास॥