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हमारी उम्र का कपास धीरे धीरे लोहे में बदल रहा है (कविता) / हेमन्त देवलेकर
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08:43, 31 अगस्त 2014
हमारे बारे में ये दुआएँ की जाती हैं
कि हम कभी बीमार न पड़ें
शोरगुल और धमा-चैकड़ी मचाते
बेफि़क्र
बेफिक्र
बच्चे
हमें दिखाई न दे जाएँ
और स्कूल जाते बच्चों का
Gayatri Gupta
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