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15:04, 30 सितम्बर 2014 {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार मुकुल }} {{KKCatKavita}} <poem>
खाब सा इक उनका वजूद है
हर तरफ बस वो ही मरदूद है
खाब सा इक …
सीखचों के पार उपर चांद है
चिमगादडों की इधर उछल-कूद है
खाब सा इक …
हवा है तेज धूल भी खूब है
खडक उनकी किधर मौजूद है
खाब सा इक …
1997
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