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<Poem>
मेरी कोशिश
सूखी नदिया में-
बन नीर बहूँ मैं
चल बह पाऊँ
उन राहों पर भी
जिनमें कंटक छहरे बिखरेतोड़ सकूँ चट्टानों को भीगड़ी हुई जो गहरे
हर राही रत्न, जवाहिरमंजिल पा जाए मुझसे जन्मेंऐसी राह इतना गहन बनू मैं
थके हुए को
चलकर जीवन-जल दूँ
दबे और कुचले पौधों को
हरा-भरा
नव-दल दूँ
सबके साथ दहूँ मैं
नाव चले तोमुझ पर ऐसीदोनों तीर मिलाएजहाँ-जहाँ पर रेत अड़ी है मेरी धार बहाए नाव चले तो मुझ पर ऐसी दोनों तीर मिलाए
ऊसर-बंजर तक जा-जाकर सबके चरण पखार गहूँ मैं
</poem>
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