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|रचनाकार=केशवदास
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जौं हौं कहौं रहिए तौ प्रभुता प्रगट होति,
चलन कहौं तौ हित हानि नाहिं सहनो.
जैसियै सिखाऔ सीख तुमहीं सुजान प्रिय,
तुमहिं चलत मोंहि जैसो कुछ कहनो.
<poeM/poem>
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