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{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
फेंक दिया है उठा’र
घर रै पिछोकड़ै में
कचरै रै सागै
बै काळिया जूता
जका काल तांई
पगां सूं भी
बेसी कीमती हा
चमचम करता
आळै में धरीजता
जतनां सूं
आज बै बेकार है
कचरौ है
आपरौ सौं कीं
दे चुकणै रै बाद।
</poem>