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जूता / संजय आचार्य वरुण
Kavita Kosh से
फेंक दिया है उठा’र
घर रै पिछोकड़ै में
कचरै रै सागै
बै काळिया जूता
जका काल तांई
पगां सूं भी
बेसी कीमती हा
चमचम करता
आळै में धरीजता
जतनां सूं
आज बै बेकार है
कचरौ है
आपरौ सौं कीं
दे चुकणै रै बाद।