908 bytes added,
06:49, 27 फ़रवरी 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
ताळ तळाया
जंगल जंगल
हुवणौ चावै-म्हारो मन
सरणाटै री-गूँज गूँज मांय
चावै गूँजणौ
म्हारो मन
बाथ्यां भर भर
मिलणौ चावै
गूंगा पीळा धोरा संग
आ बौरटी
अर खैजड़ी
बणनौ चावै
म्हारो मन
देख चिडकली
पाळ ताळ री
चक चक करणौ चावै मन
नीं ठा जठै सूं-
क्यूं बठै सूं
ऊँचौ उडणौ चावै मन
धरती माथै
घणौ अमूजो
आभो बणनौ चावै मन-
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader