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ज़ुल्म की चक्की में हमको पीसने का शुक्रिया / महेश कटारे सुगम
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07:43, 6 मार्च 2015
<poem>
ज़ुल्म की चक्की में हमको पीसने का शुक्रिया ।
ज़ात-
पांतों
पाँतों
मज़हबों में
बांटने
बाँटने
का शुक्रिया ।।
जिस्म पर चड्डी बची थी वो भी ले ली आपने,
अनिल जनविजय
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