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13:32, 20 मार्च 2015 {{KKGlobal}}
{{KKLokRachna
|भाषा=बघेली
|रचनाकार=अज्ञात
|संग्रह=
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<poem>
समला मोरी गली व्है के आव
तोरी प्रीति के लाने समला मैं भयउं बरेजे का पान
कली कली मैं तोही खोंटि खवायउं तऊ न मानिसि कान
संमला मोरी गली व्है के आव
तोरी प्रीति के लाने संमला मोर सूखा जात शरीर
ये एक सूखी अंखियां बाउर कि भरि भरि आवइ नीर
संमला मोरी गली व्है के आव
</poem>