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13:51, 20 मार्च 2015 {{KKGlobal}}
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|भाषा=बघेली
|रचनाकार=अज्ञात
|संग्रह=
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<poem>
भइउं न ब्रज केर मोरा सखी रे मैं
ओही बिरज मा बड़े-बड़े बिरछा है
बैठों पंख मुरेरा सखी रे मैं
भइउं न ब्रज केर मोरा सखी रे मैं
अरे झरि झरि पंख गिरें धरती मां
बीनै ब्रज केर लोगा सखी रे मैं
भंइउ न ब्रज केर मोरा सखी रे मैं
उन पंखन केर मकुट बनत है
बांधैं जुगुल किशोरा सखी रे
भइउं न ब्रज केर मोरा सखी रे मैं
</poem>