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06:19, 30 मार्च 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
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<poem>
घुट-घुट मरत बा आदमी
गलती करत बा आदमी
हैवानियत में जी रहल
कहवाँ डरत बा आदमी
कबहीं कली, फिर फूल बन
सूखत-झरत बा आदमी
तिल-तिल दिया के टेम अस
बूतत-बरत बा आदमी
आबाद आपन खेत रख
अनकर चरत बा आदमी
लेलस कबो करजा, उहे
रोजो भरत बा आदमी
सबके खुशी देखत दुखी
होके जरत बा आदमी
</poem>