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07:14, 30 मार्च 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
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बदल रहल तमाम काम-काम आज गाँव के
रहल कहाँ, रहे जवन सजल समाज गाँव के
हवा चलल शहर से ऊ देहात ले पसर गइल
बने लगल बा दूरदर्शनी मिजाज गाँव के
ना आदमी के साथ आदमी में प्रेम-भाव बा
बड़न का सामने ना रह गइल लेहाज गाँव के
कहाँ सुनात बा कबो गवात ढोल-थाप पर
ऊ सोरठी भा लोरिकी, रहे जे नाज गाँव के
रहे कबो मगन सभे बँटल ना घर भा दिल रहे
कहाँ गइल, रहे कबो जे राम-राज गाँव क
</poem>