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07:15, 30 मार्च 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
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<poem>
कहीं रोजे जशन मिल के मनावल जा रहल बा
कहीं अछरंग झूठे भी लगावल जा रहल बा
नशा में चूर पद-धन के, फँसा के जाल में अब
सही इन्सान जेलन में पठावल जा रहल बा
रहल बा दोस्ती में त्याग-अपनापल जरूरी
मगर अब दाँव पर दोस्तो चढ़ावल जा रहल बा
बिना मतलब खबर कोई कहाँ लेता, बताईं
जरूरत से गला तक ले लगावल जा रहल बा
बनल व्यवसाय न्यायालय में जा दीहल गवाही
कसम खा, झूठ के साँचो बनावल जा रहल बा
नया गीतन के बढ़ते जा रहल बा रोज फैशन
कोइल के छोड़ कउआ से गवावल जा रहल बा
</poem>