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10:16, 5 अप्रैल 2015 {{KKRachna
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
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|संग्रह=
}}
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<poem>
मैं जैसे सुख से रहता हूँ,
वैसे रहें पड़ोसी जन।
कोई अति धनवान नहीं हो,
कोई हो न बहुत निर्धन।
कंट्रोलों का नाम नहीं हो ,
होवे चोर बजार नहीं।
कोई नंगा कोई भूखा,
हो कोई बेकार नहीं।
लालच या भय के पिंजड़े का,
कभी नहीं मैं कीर बनू।
हे भगवान बड़ा होने पर,
मैं जन सेवक वीर बनूँ।
</poem>