853 bytes added,
11:21, 5 अप्रैल 2015 {{KKRachna
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
सूरज कहता नहीं किसी से,
मैं प्रकाश फैलाता हूँ।
बादल कहता नहीं किसी से,
मैं पानी बरसाता हूँ।
आंधी कहती नहीं किसी से,
मैं आफत ढा लेती हूँ।
कोयल कहती नहीं किसी से,
मैं अच्छा गा लेती हूँ।
बातों से न, किन्तु कामों से,
होती है सबकी पहचान।
घूरे पर भी नाच दिखा कर,
मोर झटक लेता है मान।
</poem>