भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहो मत करो / श्रीनाथ सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूरज कहता नहीं किसी से,
मैं प्रकाश फैलाता हूँ।
बादल कहता नहीं किसी से,
मैं पानी बरसाता हूँ।
आंधी कहती नहीं किसी से,
मैं आफत ढा लेती हूँ।
कोयल कहती नहीं किसी से,
मैं अच्छा गा लेती हूँ।
बातों से न, किन्तु कामों से,
होती है सबकी पहचान।
घूरे पर भी नाच दिखा कर,
मोर झटक लेता है मान।