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<poem>सूर्य किरण फिर आज पहन के एक घड़ी जापानी
कमरे में आयी सुबह-सवेरे, मिन्नत एक ना मानी
हाय! तिलस्मी सपनो सपनोंं में मैं मार रहा था बाज़ी
और हैं दादा जी, "जल्दी उठ्ठो" आवाज़ लगा दी !!
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