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सूरज से मेरे दादाजी / शार्दुला नोगजा
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13:55, 8 अप्रैल 2015
<poem>सूर्य किरण फिर आज पहन के एक घड़ी जापानी
कमरे में आयी सुबह-सवेरे, मिन्नत एक ना मानी
हाय! तिलस्मी
सपनो
सपनोंं
में मैं मार रहा था बाज़ी
और हैं दादा जी, "जल्दी उठ्ठो" आवाज़ लगा दी !!
Gcgupta
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